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Sunday, January 01, 2023

नव साल सुयोगी हो

नव साल सुयोगी हो
खुशियाँ हों हर घर
कोई ना रोगी हो

-शर्मिला चौहान

Friday, December 30, 2022

कुछ रोज

कुछ रोज ठहर जाये
ठंड तनिक कम हो
फिर साल नया आये

-अमित खरे

नव वर्ष तुम्हारा वंदन है

नववर्ष तुम्हारा वंदन है !
अभिनंदन है !!

पिछले वर्षों जो घाव दिये
जो दर्द दिये, अहसास दिये
है तुमसे वह उम्मीद नहीं
मन है फिर नवोल्लास लिये

अपनों के जो हैं मन टूटे
उम्मीद उन्हें तुम जोड़ोगे
तुमको हैं सौ-सौ सौगंधें
विश्वास नहीं तुम तोड़ोगे

जिन शाखों से हैं पात झरे
तुम पुनः पल्लवित कर दोगे
तुमसे है बस उम्मीद यही
खुशियों से दामन भर दोगे

कोई बेटी फिर ना चीखे
ना शैतानी की भेंट चढ़ें
समरसता का ले मूलमंत्र 
सब एक साथ फिर पलें-बढ़ें

बिंदी न किसी की फिर उजड़े
माँओं की गोद न सूनी हो
मातमी दिवस फिर हों न कहीं
फिर रात न कोई खूनी हो

भारत की प्रभुता, संप्रभुता 
पर, आँच न तुम आने दोगे
है आस बड़ी तुमसे इतनी 
तुम खरे हमेशा उतरोगे।

नववर्ष तुम्हारा वंदन है!
अभिनंदन है!
           
-राम सागर यादव

Wednesday, June 23, 2021

माहिया

नववर्ष मुबारक़ हो
स्वस्थ सभी जन हो
उन्नति का कारक हो

 -निवेदिताश्री

माहिया

नववर्ष मिला हमको
स्वप्न तराशे हम
खोये ना अवसर को।

-सुरंगमा यादव

माहिया

नववर्ष बहाना है
फिर पतझर मधुऋतु
जीवन में आना है ।

-सुरंगमा यादव

माहिया

नववर्ष मना लें हम
कुछ अपनी कह लें 
औरों की सुन लें हम।

-सुरंगमा यादव

माहिया

नववर्ष निराला हो 
जन-जन की पीड़ा 
यह हरने वाला हो।

-सुरंगमा यादव

बाँध ले जाओ

बाँध ले जाओ 
ओ ! जाते हुए साल 
निर्मम दिन
 
-आभा खरे

सौंप के यादें

सौंप के यादें 
कैलेंडर गिराता
आख़िरी पर्दा !

-आभा खरे

Tuesday, June 22, 2021

नया वर्ष है

नया वर्ष है !
खुलेंगे बंद द्वार
पुरुषार्थ से

-डा० विश्वदीपक बमोला

पेट की भूख

पेट की भूख
नए साल की खुशी
चुरा ले गई !

-डा० विश्वदीपक बमोला

ले कर आना

ले कर आना
खुशियों की सौगातें
हे नववर्ष !

-डा० विश्वदीपक बमोला

प्रश्न हैं नए

 प्रश्न हैं नए
आया हल ढूँढने
ये नया साल

-डा० विश्वदीपक बमोला

उड़ जाएगा

उड़ जाएगा !
वक्त के पख लगे
नए साल को

-डा० विश्वदीपक बमोला



पहली भोर

पहली भोर
ठिठकी ठिठुरन
नववर्ष की

-डा० विश्वदीपक बमोला



Monday, February 01, 2021

एक और नये वर्ष में

एक और नये वर्ष में 
प्रवेश कर रही है दुनिया
और दुनिया के साथ मैं भी 
इसका इतिहास 
नहीं पता है मुझको
काँप रहे हैं मेरे पैर
न जाने क्यों 
इस नये साल में 
जाने के लिए 
शायद डर रही हूँ 
बीते साल को याद कर  
नया साल क्या लाएगा!
मुझे नहीं पता 
शायद यह लबालब होगा
प्यार और उत्साह से 
या अभिशप्त होगा
अकेलेपन की त्रासदी झेलने को 
जो बिछड़ गये 
उन्हें वापस लाना संभव ना हो 
लेकिन जो बचे रह गये हैं
शायद उन्हें ला सके 
थोड़ा और क़रीब अपनों के 
लेकिन मैंने सुनी है 
एक कानाफूसी  
कानाफूसी की फुसफुसाहट से 
पता चला है कि- 
सब कुछ ठीक ही होगा
इस नये साल में
लोग निकल सकेंगे
सड़कों पर बिना डरे
मजदूरों से भरे रहेंगे कारखाने
किसान खुश हो सकेंगे
देख देख अपनी लहलहाती फसलें  
मैं भी खुश हो लूँगी
यह सब देख-देख 
इतनी खुशी तो
सौंप ही देना मेरे नववर्ष

-वंदना वात्स्यायन

बची रहें

बची रहे वो हँसी पोपली
मासी बुढ़िया बची रहे
समय दरिंदे के पंजे से
छुटकी गुड़िया बची रहे

बची रहें निर्भीक उड़ानें
अल्हड़ कूकें बची रहें
बासी रोटी, आम की थाली
मन की हूकें बची रहें

लूडो जिसने घर को बाँधा
ता़श बाज़ियाँ बची रहें
ज़ूमकॉल पर मीत पुराने 
चुहलबाजियाँ बची रहें

भूलभाल के बेसुध युग में
डर की यादें बची रहें
जो वसुधा के हक में की थीं
वो फ़रियादें बची रहें

इक्किस वाले नए वर्ष में
बीस की सीखें बची रहें 
भीड़भाड़, उपभोगवाद में
न्यून की लीकें बची रहें!

-शार्दुला नोगजा

Friday, January 29, 2021

सूर्य नूतन वर्ष का अब काश ऐसी भोर लाए!

हो उजाला सूर्य का,चन्द्रमा किरणें बिछाये ,
अम्बु अमृत छिड़क छेड़े ,पवन सहला कर जगाये ,
शिशु धरा का अब उठे तम से निकल कर बाहर आये 
सूर्य नूतन वर्ष का काश ऐसी भोर लाये!

सुर हृदय की तंत्रियों के, खुद ब खुद ही खनक जाएँ 
मन सभी का मिल सुर में, वृहद् एक आलाप गाएँ ,
कम्पनों की लड़ियाँ बन कर, जग पे नव सी भोर छाए,
गूँजे समरसता की सरगम, विजन वन भी जाग जाये,
सूर्य नूतन वर्ष का काश ऐसी भोर लाये!

छूटे बंधन कलुषता के, नव पगों से आस आये,
छोड़ना जो चाहते , दृढ़ता से उसको अमल लायें ,
नव शिरों से नव -धरा को, नई सी एक सांस आये
बने फिर भारत जगतगुरु, विश्व तक पैगाम जायेI
सूर्य नूतन वर्ष का काश ऐसी भोर लाये I 

-ममता शर्मा

नव-वर्ष में बढ़े प्रेम-विश्वास

रीत-रिवाज वहन-चलन हित,
पूर्व-संध्या पर सजते साज
दु:ख-दर्द से पिंड छुटा हो
या फिर आशान्वित उल्लास

नियम-निष्ठ सा दिवस ढल गया
शाम अलग सी, उदित हुलास
प्रदोष-पल में, पिया मिलन की
तरणि-तपी जगा गया आस
 
उमंग अनंत, अरमान अशेष 
मचल गये, हों पूरित आज 
दूर अभी है कल की भोर
सजनी रजनी, पुलकित गात
 
आहों के उन्मत्त असर में,
प्रबल हुई चकोरी आस
किस पल ढ़ले ज्वर-उन्माद
किस पल खिले सुप्रभा आज
 
निशा बीत गयी पहर-पहर
मन:दृग अश्रु बहे झर-झर
चकवी करती रैन विलाप 
न जाने कब होगा प्रभात 
 
निशा झारति तारक-राख
शलभ शिथिल, निरुन्माद
विरहाकुल, भर नयन विहाग
स्नेहातुर उर मूक निराश

आस-निरास भँवर में उल्झी
ज्यों-त्यों कटी विरह की रात 
उषा-याम, शुभ्र ज्योतिर्मय 
बिखर गया तम का अवसाद

स्वाति-सारंग कथा परिकल्पित 
दृढ़-संकल्प दिलाता याद
सृष्टि का ध्रुवीय-अनुराग 
चन्दा-चकोर प्रेम की बात
 
अश्रु-हास की ले सौग़ात
आया फिर से मधु-प्रभात
प्रीत की रीत, आस-अभिलास
नव-वर्ष में बढ़े प्रेम-विश्वास! 

-राय कूकणा