रीत-रिवाज वहन-चलन हित,
पूर्व-संध्या पर सजते साज
दु:ख-दर्द से पिंड छुटा हो
या फिर आशान्वित उल्लास
नियम-निष्ठ सा दिवस ढल गया
शाम अलग सी, उदित हुलास
प्रदोष-पल में, पिया मिलन की
तरणि-तपी जगा गया आस
उमंग अनंत, अरमान अशेष
मचल गये, हों पूरित आज
दूर अभी है कल की भोर
सजनी रजनी, पुलकित गात
आहों के उन्मत्त असर में,
प्रबल हुई चकोरी आस
किस पल ढ़ले ज्वर-उन्माद
किस पल खिले सुप्रभा आज
निशा बीत गयी पहर-पहर
मन:दृग अश्रु बहे झर-झर
चकवी करती रैन विलाप
न जाने कब होगा प्रभात
निशा झारति तारक-राख
शलभ शिथिल, निरुन्माद
विरहाकुल, भर नयन विहाग
स्नेहातुर उर मूक निराश
आस-निरास भँवर में उल्झी
ज्यों-त्यों कटी विरह की रात
उषा-याम, शुभ्र ज्योतिर्मय
बिखर गया तम का अवसाद
स्वाति-सारंग कथा परिकल्पित
दृढ़-संकल्प दिलाता याद
सृष्टि का ध्रुवीय-अनुराग
चन्दा-चकोर प्रेम की बात
अश्रु-हास की ले सौग़ात
आया फिर से मधु-प्रभात
प्रीत की रीत, आस-अभिलास
नव-वर्ष में बढ़े प्रेम-विश्वास!
-राय कूकणा
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