माना ग़लती उनकी
कैसे जियूँगा जो
बूँदे न मिलीं जल की
-मीनू खरे
सब जाने तू छोटे
मानव बन स्वार्थी
करता कारज खोटे
-निवेदिताश्री
पापा बतलाते हैं
नदियाँ सूख गयीं
तुम जनम न पाते हो
-निवेदिताश्री
ना मैं इतराता हूँ
बेबस हूँ कितना
तुमको बतलाता हूँ
-मीनू खरे
जंगल धूँ-धूँ जलता
छूटा घर अपना
कोई वश ना चलता
-आभा खरे
कुछ अजब तपन सी है
ऐसा क्यूँ लगता ?
भारी उलझन सी है!
-आभा खरे
आवारा तुम फिरते
हमसे सीखो जो
औरों का हित करते
-प्रीति गोविन्दराज
अच्छा बहलाते हो
यूँ बनकर भोले
झट मुझे गिराते हो
-प्रीति गोविन्दराज
कितना इतराते हो
प्यासा रखते हो
या वारि डुबाते हो !
-मीनू खरे
आया जी लो आया
झेलो अब वर्षा
जलमय होगी काया
-निवेदिताश्री
क्या मन में बात कहो
प्यासा मन मेरा
पानी बन आज बहो
-निवेदिताश्री
मुझको कहते सनकी
समझो कुछ बातें
तुम भी मेरे मन की!
-मीनू खरे
अच्छे आतंकी हो
प्यासा मारोगे
क्या बिलकुल सनकी हो
-निवेदिताश्री
ओ नन्हे धान कुँवर
मेरा मूड नहीं
रुक जा कुछ देर ठहर
-मीनू खरे
बादल काका आओ
गर्मी बहुत लगे
पानी बरसा जाओ
-निवेदिता श्रीवास्तव