कविता की पाठशाला
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विनय मोहन्ता
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Wednesday, November 25, 2020
विनय मोहन्ता
शहरों पर अभिमान है, शहरों की पहचान।
फिर भी लगते शहर सब, लगभग एक समान
लगभग एक समान, व्यवस्था और अवस्था
कुछ लगता अनुकूल, लगे कुछ हालत खस्ता
कहने का अभिप्राय, बदलता रहता पहरों
देखेंगे जो घूम, पर्यटक शहरों शहरों
-विनय मोहन्ता
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