Showing posts with label संतोष भाऊवाला. Show all posts
Showing posts with label संतोष भाऊवाला. Show all posts

Sunday, June 06, 2021

दोहा


कहे यामिनी चाँद से, चलो चलें उस पार.
जहाँ धरा का गगन से, होता है अभिसार.

-संतोष भाऊवाला

Wednesday, May 19, 2021

दोहा


बाहर भीतर एक सा, रखे सरल जो भाव.
उसे जगत में कभी भी, रहता नहीं अभाव.

-संतोष भाऊवाला 

Saturday, May 08, 2021

दोहा

सोन चिरैया कह रही, रोको नहीं उड़ान.
मरुधर की पहचान हूँ, रक्खो मेरा मान.

-संतोष भाऊवाला

Thursday, January 28, 2021

नए साल की नई आशाएँ

नए साल की नई आशाएँ 
कुछ अपनी कुछ पराई
गुजरे साल की स्मृतियाँ 
कुछ दुखद कुछ सुखदाई।
 
माना, वक्त की करवट से 
आती सुनामी और प्रलय
कभी सहते घोटालों की मार,
भ्रष्टाचार रूपी आँधी  
नियति मान, करें संतोष 
पर कैसे सहे मानवता की हार
जब हो अपराध जघन्य 
न्याय के प्रहरी हों अपराधी
 ऐ मानव! कर विचार, 
क्यों हो नारी पर हिंसक वार
नारी नहीं भोग की वस्तु,
क्यों हो चौराहों पर शर्मसार
आओ, संकल्पों में एक संकल्प 
ऐसा ले इस नव वर्ष
फलीभूत होंगे नव विकल्प, 
नव उत्कर्ष, नव निष्कर्ष
नए साल में रख लें, 
यादों के संदूक में सहेज
गुजरे साल की 
सुखद स्मृतियों के खनकते सिक्के
नए साल में 
निराशा की गठरी न लाद
दुखद स्मृतियों से ले प्रेरणा
बनेंगे संभलते चक्के
अतीत, समय की सड़क पर 
है मील का वह पत्थर
जिससे पता चलता, 
मंजिल कितनी पास या दूर
उन मोतियों को पिरोये जो 
दामन में गुजरा साल
देकर जा रहा,ज्यों 
चंदा की चांदनी,सूरज का नूर

-संतोष भाऊवाला