नए साल की नई आशाएँ
कुछ अपनी कुछ पराई
गुजरे साल की स्मृतियाँ
कुछ दुखद कुछ सुखदाई।
माना, वक्त की करवट से
आती सुनामी और प्रलय
कभी सहते घोटालों की मार,
भ्रष्टाचार रूपी आँधी
नियति मान, करें संतोष
पर कैसे सहे मानवता की हार
जब हो अपराध जघन्य
न्याय के प्रहरी हों अपराधी
ऐ मानव! कर विचार,
क्यों हो नारी पर हिंसक वार
नारी नहीं भोग की वस्तु,
क्यों हो चौराहों पर शर्मसार
आओ, संकल्पों में एक संकल्प
ऐसा ले इस नव वर्ष
फलीभूत होंगे नव विकल्प,
नव उत्कर्ष, नव निष्कर्ष
नए साल में रख लें,
यादों के संदूक में सहेज
गुजरे साल की
सुखद स्मृतियों के खनकते सिक्के
नए साल में
निराशा की गठरी न लाद
दुखद स्मृतियों से ले प्रेरणा
बनेंगे संभलते चक्के
अतीत, समय की सड़क पर
है मील का वह पत्थर
जिससे पता चलता,
मंजिल कितनी पास या दूर
उन मोतियों को पिरोये जो
दामन में गुजरा साल
देकर जा रहा,ज्यों
चंदा की चांदनी,सूरज का नूर
-संतोष भाऊवाला