कविता की पाठशाला
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व्योम के पार
कविता की पाठशाला
माहिया
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अचला झा
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Wednesday, May 12, 2021
दोहा
घटाटोप बारिश हुई, उजड़े नीर अपार।
देख विशाल विषम दशा,चील बादलों पार।।
-अचला झा
Friday, May 07, 2021
दोहा
सोहे वृष्टि मयूर मन, तम उलूक के संग।
चमगादड़ निर्जन रहे, भिन्न प्रकृति के रंग।।
-अचला झा
Thursday, January 28, 2021
हम ऐसे नववर्षँ मनाएँ !
चहुँ दिसि छाए हर्ष
बांटें खुशियाँ, बढ़ें चौगुनी
द्वार द्वार मुस्काएँ दीप
वक़्त से कुछ पल चुराएं
अनजानों में बाँट आएं
हम ऐसे नववर्षँ मनाएँ!
रोज़ की रोटी, जिनकी चिंता
बन जाती है चिता समान
ऑंखों में उनके कुछ सपने
मिलकर उनके साथ सजाएं
नववर्ष का बिगुल बजाएं
संवादहीनता दूर भगाएं
हम ऐसे नववर्षँ मनाएँ!
चैट ग्रुप से चौपालों तक
चलो आज फिर लौट आएं
हँसकर बोलें, दिल खोलें
जीवन के अवसाद मिटाएं
नए वर्ष में गले लगाएं
मिल जुल बैठें, दूरी अपनाएँ
आने वाली है वैक्सीन
कोरोना को मार भगाएं
हम ऐसे नववर्षँ मनाएँ!
-अचला झा
Wednesday, November 25, 2020
कुंडलिया
दावानल से जूझता,काला हुआ वितान
विगत फैली हरियाली,देखो बना श्मशान
देखो बना श्मशान, जलती संपदा सारी
जूझ रहा हर जीव,मची है हाहाकारी
कारण मानव स्वार्थ,या प्रकृति का हालाहल
है अगन अभी प्रखर, कैसे बुझे दावानल
-अचला झा
अचला झा
रवि ठाकुर का शहर ये,माँ काली का धाम
रसगुल्ले मशहूर हैं, खाएं सुबहो-शाम
खाएं सुबहो-शाम, मिष्टी बांग्ला बोली
रग रग में फुटबॉल, गांगुली की हमजोली
दुर्गोत्सव विख्यात, बने कलकत्ता आतुर
भूमि है सुभाष की, नरेन्द्र औ रवि ठाकुर
-अचला झा
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