बची रहे वो हँसी पोपली
मासी बुढ़िया बची रहे
समय दरिंदे के पंजे से
छुटकी गुड़िया बची रहे
बची रहें निर्भीक उड़ानें
अल्हड़ कूकें बची रहें
बासी रोटी, आम की थाली
मन की हूकें बची रहें
लूडो जिसने घर को बाँधा
ता़श बाज़ियाँ बची रहें
ज़ूमकॉल पर मीत पुराने
चुहलबाजियाँ बची रहें
भूलभाल के बेसुध युग में
डर की यादें बची रहें
जो वसुधा के हक में की थीं
वो फ़रियादें बची रहें
इक्किस वाले नए वर्ष में
बीस की सीखें बची रहें
भीड़भाड़, उपभोगवाद में
न्यून की लीकें बची रहें!
-शार्दुला नोगजा
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