Monday, May 10, 2021

दोहा

चातक को प्यारा बहुत, सदा आत्मसम्मान।
नीर माँगता मेघ से, नहीं अन्य जल पान।।

-डॉ० मंजू यादव

4 comments:

Madhu said...

चातक की प्रकृति का बहुत ही सुंदर व सहज रूप में वर्णन!

डॉ0 मंजू यादव said...

सादर हार्दिक आभार मधु जी🙏🙏

डॉ सुनीता यादव Dr Sunita Yadav said...

बहुत सुंदर

डॉ सुनीता यादव Dr Sunita Yadav said...

बहुत सुंदर