दोहे
ओ! सूरज नव- वर्ष के, ले आ तू संदेश।
सुख,स्वास्थ्य,समृध्दि से, चहके यह परिवेश।।
अपनों से अपनत्व के, अधिक सुदृढ़ हों तार।
जाएँ ना माता-पिता, वृद्धाश्रम के द्वार।।
लक्ष्य प्राप्ति निर्बाध हो ,फलीभूत सब आस।
नई प्रभा,नव- दीप्त से, हो व्यक्तित्व उजास।।
हिंसा ना आतंक का, लगे देश पर दाग।
नारी- शुचिता को पुनः, डसें नहीं अब नाग।।
तमस मिटे अज्ञान का, दमन-नीति से त्राण।
जीवन-मूल्यों को मिले, फिर जगती में प्राण।।
कलम साधना हो सतत, नियत ज्ञान विस्तार।
दो सहस्त्र इक्कीस दे, उपलब्धियाँ अपार।।
-सुधा राठौर
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