महामारी के आतंक पर-
लटका यह पंचांग
कल, एक वर्ष पुरातन हो जाएगा
नूतन वर्ष की नई सुबह में
यह पंचांगबदला जाएगा
डायरी के नए पृष्ठ,
कुछ अलग अंदाज से खोलूँगा
शब्दों में नया जीवन,
नये ढँग से ढूँढ लूँगा।
वादा है इस नव वर्ष में,
नई विधाएँ भी लिखूँगा।
विगत वर्ष के विध्वंस पर,
सपनों का नवयुग सृजित करूँगा!
गत वर्ष जो आया था,
मुँह खोले विकराल बड़ा
लील रहा था वह विषधर,
मानव जाति को खड़ा-खड़ा
लाश पगडंडियों पर बिछी थीं,
गिद्धों ने किया महाभोज !
चीलों की क्षुधा मिटी,
करते थे मुर्दों की खोज!
प्रण है,इस नूतन वर्ष में,
मृत्यु से जीवन खींच लूँगा
विगत वर्ष के आकुल विध्वंस पर,
सपनों का नवयुग सृजित करूँगा!
पीकर शिव ने विष का प्याला
कंठ कर लिया है नीला
अमृत की कुछ बूंदें चखा दे,
तिक्त बहुत था विष का हाला
दुर्घटनाएं थी अप्रत्याशित सब,
अपनों को भी न दे पाई विदाई!
गरल, काल का घोंट रहे थे,
विछोह हुआ बड़ा दुखदाई!
दूरी से झुलसे रिश्तो पर,
फिर से नरम मरहम रखूँगा।
विगत वर्ष के आकुल विध्वंस पर,
सपनों का नवयुग सृजित करूँगा!
बीत गई वेदना की रजनी,
कटा नियति का दुखद लेख
नव वर्ष में बदल जाएगी,
शायद इन हाथों की रेख
साकार मधुर एक उम्मीद,
स्वस्थ शरद ऋतु लाएगी
फूटेंगी आशा की किरणें,
हर घर के भीतर आयेंगीं
तृष्णा के विचलित तिमिर में,
दिनकर की रश्मियाँ भर लूँगा!
विगत वर्ष के आकुल विध्वंस पर,
सपनों का नवयुग सृजित करूँगा!
-डा० स्मिता सिंह
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