कविता की पाठशाला
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व्योम के पार
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माहिया
Wednesday, May 05, 2021
दोहा
उल्लू होते हैं सदा, बिन चमकीले दाँत।
दिन भर ये सोते रहें, जागें सारी रात।।
-ममता मिश्रा
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