Monday, May 10, 2021

दोहा

कौए बैठे झुंड में, जहाँ भवन का काम।
तार लकड़ियांँ ढूंँढ़कर, लगें बनाने धाम।।

-शर्मिला चौहान

3 comments:

डॅा. व्योम said...

अच्छा दोहा है

शर्मिला said...

जी बहुत आभार।

शर्मिला said...

कविता की विभिन्न विधाओं को सीखने के लिए, कविता की पाठशाला बहुत अच्छा समूह है। दोहा विधा के लिए आदरणीय व्योम सर का बहुत बहुत धन्यवाद।