भरकर आशा हाथ में, आया है नव साल।
खुशियों का पहने मुकुट, तिलक दमकता भाल।।
दुखी हुई आकुल धरा, सुरसा मुख-सा रोग।
मनुज घिरा अवसाद से, अशुभ बना था योग।।
रक्तबीज है सामने, करना माँ संहार।
दुनिया से यह मिट सके, ऐसा करो प्रहार।।
शिक्षा का दीपक जले, फैले ज्ञान प्रकाश ।
पंख परिश्रम के लगें, दूर नहीं आकाश ।।
-शर्मिला चौहान
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