विगत वर्षों-सा
नव प्रभात के साथ
नव वर्ष आया
अतिथि सम
उपहार भी लाया
आकाश के बड़े टोकरे में
कोहरा संग लाया
नव वर्ष आया।
धुंध की चादर ओढ़
ठंड से ठिठुरता
बर्फ से खेलता
बदन कँपकपाता
हर्ष उल्लास के साथ
कण-कण में छाया
नव वर्ष आया।
पुरातन चला तो गया
पर खुशी-खुशी नहीं
जाना पड़ा उसे
नहीं सह पाया वह
प्रकृति की मार
नहीं झेल पाया झंझावात
सूर्य चंद्र ग्रहण के दुष्प्रभाव
जन जीवन का आक्रोश
अशांति और भय
कुर्सी की चाह
नारी की दुर्दशा
बच्चियों का अपमान
दरिंदगी, बेइमानी
कटुता और स्वार्थ
कोरोना से जंग करता
कुछ-कुछ अकुताया
नव वर्ष आया।
शिशु-सा आगमन
नव वर्ष का आरम्भ
उसका यह बचपन
सहर्ष स्वीकार करेंगे
सजाएँगे संवारेंगे
खुशियाँ मनाएंगे
हँसेंगे हँसाएंगे
सभी उसे दुलारेंगे
और घुटनों चलते
जब स्वयं उठ खड़ा होगा
समय के थपेड़े झेलता
सर उठाकर चलेगा
यौवन का उत्साह झलकेगा
वास्तविकता का एहसास होगा
एहसास जगाता
नई योजनाओं को
साथ लेकर आया
नव वर्ष आया।
बिखरा-सा आसपास
क्या सँवरा क्या सँवारना
क्या खोया क्या अवशेष
जिम्मेदारी का एहसास
होगा प्रयास
बागडोर संभालने का
धीरे-धीरे क़दम उठेंगे
लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे
अस्तित्व को बचाता
अवशेष को समेटता
कुछ नया रचता
नज़र आएगा प्रतीक्षारत
उत्फुल्ल नवप्रभात
नव उमंगों के साथ
नव उल्लास छाया
नव वर्ष आया।
-कविता कालिंदी
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