पाठक बिन सार्थक नहीं,लेखन-कर्म विधान।
टिप्पणियाँ पथ-दर्शिका, मिले सृजन संज्ञान।।
मिले सृजन संज्ञान , परिष्कृत लेखन होता।
प्रतिक्रियात्मक नीर, सभी त्रुटियों को धोता।।
अनुशंसा का लोभ,प्रगति-पथ में अति बाधक।
प्रोत्साहन के साथ,कलम का सम्बल पाठक।।
-सुधा राठौर
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