Wednesday, November 25, 2020

सुधा राठौर

 दीया- बाती जब करें, आपस  में  परिहास
लथपथ  होकर  नेह से, बोली करे उजास
बोली करे उजास,  हवा  सँग  खेल रचाएँ
गहन  तिमिर पर खूब, तंज  के तीर चलाएँ
लेकिन आती भोर, लिये जब  दिन की पाती
हो जाते हैं  मौन, अचानक दीया- बाती

-सुधा राठौर

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