आँगन में जलता रहे, मन-दीपक ले आस।
बैर द्वेष का तम छँटे, पसरे नेह प्रभास।।
पसरे नेह प्रभास, जगत में हो उजियारा।
उर में करुणा वास, दूर हो दुःख अँधियारा ।।
उजली हो हर राह, ज्योति से दमके दामन।
बने स्वर्ग यह विश्व, भरे खुशियों से आँगन।।
-विद्या चौहान
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