कविता की पाठशाला
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व्योम के पार
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माहिया
Wednesday, November 25, 2020
विद्या चौहान
गौरैया न दिखे कहीं, चली गई अब दूर
छीना उसके ठाँव को, मानव कितना क्रूर
मानव कितना क्रूर, उजाड़े वन अमराई
लोभी मन मद चूर, समझे न पीर पराई
है निसर्ग की चाह, अजिर में हो पत छैया
मिले विटप को गाह, लौट आए गौरैया
-विद्या चौहान
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